शोकाकुल या दुखद अवसरों के रीति रिवाज

शोकाकुल या दुखद अवसरों के रीति रिवाज
मनुष्य के जीवन में खुष्ी एंव गम दोनों के लिए अलग अलग रीति रिवाज होते है। तथा मनुष्य द्वारा उनका निर्वाहन आवष्यक रूप से किया जाता है। ष्षोक या गमी होने पर मृतक की आत्म-षान्ति हेतु निम्न रस्मों का निर्वाहन किया जाता है।
बैकुण्डीः-व्यक्ति की मृत्यू होने पर बॉस की बनी कॉठी (मृत्यु शैया)
सांतरवाडा :-मृतक का अंतिम संस्कार होने तक घर व पडौस में चूल्हा नहीं जलाया जाता है। अंत्योष्टि क्रिया सम्पन्न होने के उपरांत अंत्योष्टि में शामिल व्यक्ति स्नान करें कपडा बदलकर मृतक के घर ढॉढस बंधाने जाते है। यह प्रक्रिया सांतरवाडा कहलाती है।
मौसर (मृत्यु शेज “कार्ज “ नुक्ता “ बारहवॉ)ः-मृतक के बारह या तेरह दिन होने पर शोकाकुल परिवार द्वारा मृत्यु -भोज का आयोजन किया जाता है। जिसमे ब्राह्मणों का भोजन कराया जाता है।


पगडी रस्म :- मौसर के दिन मृतक के ज्येष्ट पुत्र को निकटतम सम्बन्धियों द्वारा पगडी बॉध कर मृतक का उŸाराधिकारी चुना जाता है।
जिन व्यक्तियों के पिछे कोई नहीं होता है। वे अपने जीते जी अपना मौसर खुद कर जाते है। इसे जौसर कहते हैं
श्राद्धः- आष्विन माह की जिस तिथि को व्यक्ति की मृत्यु होती है। श्राद्ध उसी दिन मनाया जाता है।
अन्य रीति रिवाज तथा कुरीतियॉ
डावरिया :- राजपूतना में राजा महाराजा एंव जागीदार बपनी कन्याओं के विवाह के अवसर पर दुल्हन के देहज के साथ कॅुवारी कन्या भी भेजते थे। ये कुवारी कन्याएॅ डावारिया कहलाती हैं ।
नाता प्रथाः- इस प्रथा के अंतर्गत पत्नी पति से परस्पर सहमति के आधार पर अपने पति को छोडकर किसी अन्य पुरूष के साथ घर बसा सकती है।

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