कक्षा 9 हिंदी – ललद्यद: लेखक परिचय और प्रश्नोत्तर

ललद्यद, जिन्हें लल्लेश्वरी, ललयोगेश्वरी या ललारिफा के नाम से भी जाना जाता है, कश्मीरी भाषा की महान संत-कवयित्री थीं। उनका जन्म लगभग सन् 1320 में कश्मीर के पाम्पोर स्थित सिमपुरा गाँव में हुआ था। उनके जीवन की अनेक घटनाएँ लोक स्मृतियों में जीवित हैं, पर ऐतिहासिक रूप से प्रमाणित नहीं हैं। उनका देहांत लगभग सन् 1391 में माना जाता है।
ललद्यद की काव्य शैली को ‘वाख’ कहा जाता है, जो कश्मीरी भक्ति काव्य की विशेष विधा है। जैसे हिंदी में कबीर के दोहे और मीरा के पद प्रसिद्ध हैं, वैसे ही कश्मीर में ललद्यद के वाख प्रसिद्ध हैं।
उनकी कविताओं में भक्ति, आत्मज्ञान, सामाजिक समता और धार्मिक आडंबरों का विरोध झलकता है। उन्होंने प्रेम को सर्वोच्च मूल्य माना और सरल कश्मीरी भाषा में गूढ़ आध्यात्मिक विचार प्रस्तुत किए।
ललद्यद की रचनाओं में तत्कालीन समाज, संस्कृति और आध्यात्मिक चेतना का सुंदर समन्वय है। आज भी उनके वाख कश्मीरी लोक स्मृति में जीवित हैं। वे आधुनिक कश्मीरी भाषा की जननी मानी जाती हैं।
📌 One-Liner Questions and Answers
Q1. ललद्यद का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
A: सन् 1320 के लगभग, सिमपुरा गाँव (पाम्पोर, कश्मीर) में।
Q2. ललद्यद को और किन नामों से जाना जाता है?
A: लल्लेश्वरी, ललयोगेश्वरी, ललारिफा।
Q3. उनकी काव्य शैली को क्या कहा जाता है?
A: वाख।
Q4. उनके वाख किस पर आधारित होते हैं?
A: भक्ति, आत्मज्ञान, सामाजिक समता और धार्मिक आडंबरों के विरोध पर।
Q5. ललद्यद की भाषा शैली की विशेषता क्या थी?
A: उन्होंने जनता की सरल भाषा में गूढ़ आध्यात्मिक विचार प्रस्तुत किए।
Q6. ललद्यद का देहांत कब माना जाता है?
A: सन् 1391 के आसपास।
Q7. उनके वाखों का अनुवाद किसने किया?
A: मीरा कांत ने।
🔖 निष्कर्ष (Conclusion)
ललद्यद कश्मीरी संत परंपरा की प्रतिनिधि कवयित्री थीं जिन्होंने अपनी वाणी से सामाजिक और आध्यात्मिक परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया। उनकी वाख आज भी लोकमन में जीवित हैं और भक्ति आंदोलन की अखिल भारतीय चेतना का हिस्सा हैं।
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