समाजवाद Samajwad
समाजवाद Samajwad
समाजवाद का अर्थ समाजवादी लोकतांत्रिक मार्ग को अपनाकर सामाजिक न्याय की स्थापना तथा व्यक्ति की गरिमा और सामाजिक न्याय की स्थापना करने वाली विचारधारा हे
लास्की के अनुसार समाजवाद एक ऐसी टोपी है जिसे कोई भी अपने अनुसार पहन सकता है
समाजवाद का प्रयोग सर्वप्रथम यूरोप में 19वीं सताब्दी में किया गया
भारत में समाजवाद का विकास भारत में आधुनिक काल के प्रथम प्रमुख समाजवादी महात्मा गांधी थे परंतु उनका समाजवाद एक विशेष प्रकार का है गांधीजी के विचारों के मुताबिक हिंदू जैन स्थाई आदि धर्म का प्रभाव है गांधीजी औद्योगीकरण के विरोधी थे क्योंकि वह उसको आर्थिक असमानता शोषण तथा राजनीतिक तानाशाही का कारण समझते हैं भारत में समाजवादी विचारधारा को लोकप्रिय बनाने में पंडित जवाहरलाल नेहरू सुभाष चंद्र बोस मानवेंद्र राय आचार्य नरेंद्र देव जयप्रकाश नारायण राम मनोहर लोहिया में पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने महत्वपूर्ण योगदान दिया
समाजवाद के प्रमुख तत्व
1 पूंजीवादी और सामने वाली दोनों अतिवादी है
पूंजीवाद का अर्थ पूंजीवादी आर्थिक पद्धति है इसमें उत्पादन के साधन पर निजी स्वामित्व होता है इसे व्यक्तिगत स्वामित्व भी कहा जा सकता है व्यक्तिगत का स्वामित्व किसी एक व्यक्ति का भी हो सकता है और किसी एक समूह का भी हो सकता है
मौलिकता क्या आधार पर पूंजीवाद का अर्थ किसी देश की अर्थव्यवस्था के निजी क्षेत्र के हाथों में हो तो उसे पूंजीवाद कहते हैं
साम्यवाद का अर्थ वह सामाजिक व्यवस्था जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को उसकी क्षमता अनुसार में उसकी आवश्यकता अनुसार कार्य मिले तथा उसका प्रतिफल मिले
लोकतांत्रिक समाजवाद पूंजीवाद और साम्यवाद दोनों विचारों का समान रुप से विरोध करता है
समाजवाद के अनुसार पूंजीवादी विरोध समाजवाद सदैव पूंजीवादी विचारधारा का विरोध करता है क्योंकि समाजवादी विचारधारा के अनुसार पूंजीवाद समाज में असमानता का विकास करता है तथा सामान्य जनता का शोषण करता है पूंजीवादी व्यवस्था कैसी व्यवस्था जो सत्ता कल्याण कभी भी नहीं कर सकती हैं
समाजवाद के अनुसार साम्यवादी विरोध समाजवादी इतना विरोधी पूंजीवादी विचारधारा के हैं उतना ही विरोधी साम्यवादी विचारधारा का है क्योंकि साम्यवाद धर्म में नैतिकता का विरोध करता है वह वर्ग संघर्ष की धारणा में विश्वास रखता है समाजवाद इसी कारण से साम्यवाद को अपना पहला शत्रु मानता है
2 लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास समाजवाद के लिए सबसे प्रमुख विशेषता है कि वह अधिनायक तंत्र के सभी रूपों का विरोध करता है क्योंकि उसके अनुसार माननीय व्यक्तित्व उसकी स्वतंत्रता और गरिमा का कोई महत्व नहीं रहता है लोकतांत्रिक समाजवाद की अवधारणा की आर्थिक व सामाजिक क्षेत्र में जो भी परिवर्तन किए जाने उसके लिए इस पद्धति को अपनाने जरुरी है
3 मानवता में विश्वास पूंजीवादी और साम्यवादी दोनों विचारों के अंदर मानव आर्थिक प्राणी माना गया है किंतु समाजवाद समाजवाद में मानव को नैतिक प्राणी माना है तथा उसके मानवीय व्यक्तित्व उसकी स्वतंत्रता को महत्व दिया है पूंजीवादी मानते हैं कि किसी भी व्यक्ति का विकास नहीं हो सकता है जब तक कि उसे लाभ डर ना हो साम्यवादी मानते हैं कि हिंसा डर या आतंक के बगेर कोई भी व्यक्ति अपना विकास नहीं कर सकता है
समाजवादी विचारधारा के अंदर मानव एक भौतिक या आर्थिक प्राणी नहीं है बल्कि एक नेतिक प्राणी है समाजवादी विचारधारा के अनुसार कोई भी व्यक्ति भौतिक विचारों से नहीं बल्कि आदर्श व आशाओं से प्रभावित होता है तथा सहयोग वह सामाजिकता के आधार पर कार्य करता है समाजवादी विचारधारा ने सदैव मनुष्य के नैतिक विकास पर बल दिया है
4 नैतिक मूल्यों का समर्थक समाजवादी मानते हैं कि समाज सामाजिक व्यवस्था धर्म और नैतिकता पर टिकी हुई है अगर समाज का विकास करने हेतु इस आधार को अपनाया नहीं गया तो यह व्यवस्था खत्म हो जाएगी समाजवादी विचारधारा को स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान निभाने वालों ने समाजवाद की प्रेरणा धर्म से ही ली है समाजवाद में किसी एक धर्म को विशेष दर्जा नहीं दिया गया है बल्कि सभी धर्मों को समान दर्जा दिया है
5 आर्थिक राजनीतिक आजादी के हिमायती साम्यवादी विचारधारा के अनुसार व्यक्तियों के लिए आर्थिक स्वतंत्रता अति आवश्यक है
साम्यवादी मानते हैं कि व्यक्ति के लिए काम का अधिकार उचित परी फल तथा अवकाश का अधिकार ही सब कुछ है पूंजीवादी विचारधारा में सिर्फ व्यक्ति की राजनीतिक स्वतंत्रता पर बल दिया गया है इसमें आर्थिक स्वतंत्रता को महत्व नहीं दिया गया है
समाजवादी समाज में व्यक्ति को विचार भाषण संगठन तथा सम्मेलन आदि राजनीतिक अधिकार दिए गए हैं साथ ही साथ राजनीतिक तथा नागरिक स्वतंत्रता के साथ साथ आर्थिक स्वतंत्रता भी दी गई है
6 उत्पादन और वितरण पर लोकतांत्रिक नियंत्रण पूंजीवादी व्यवस्था में जनता को राजनीतिक विषयों में निर्णय लेने का अधिकार है परंतु जनता को आर्थिक विषयों में निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं है समाजवाद इस व्यवस्था का सदैव विरोध करता है उस की धारणा है कि देश की अर्थव्यवस्था पर लोकतांत्रिक सरकार का नियंत्रण होना चाहिए यानी प्रत्येक नियंत्रण प्रत्यक्ष रुप से जनता द्वारा निर्वाचित संसद का होना चाहिए
8 उत्पादन का लक्ष्य सामाजिकरण समाजवादी विचारधारा में शुरुआत में हर क्षेत्र में राष्ट्रीयकरण पर बल दिया गया लेकिन शीघ्र ही यह पता लगा कि राष्ट्रीयकरण से आर्थिक क्षेत्र की हर समस्या का समाधान नहीं हो सकता है बाद में संशोधन के द्वारा राष्ट्रीयकरण किस स्थान पर सामाजिकरण पर बल दिया गया
राष्ट्रीयकरण का अर्थ राष्ट्रीयकरण का तात्पर्य सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग पर सार्वजनिक स्वामित्व है
सामाजिकरण का अर्थ सामान्य करण का अर्थ है कि उद्योग सारणी क्षेत्र का हो या फिर निजी क्षेत्र का उस पर नियंत्रण राज्य सरकार का होना चाहिए उनका संचालन लाभ दृष्टि से नहीं बल्कि सामाजिक तत्वों की दृष्टि से होना चाहिए समाजवादी व्यवस्था कि यह धारणा है कि उद्योग के स्वामित्व से अधिक महत्वपूर्ण उद्योग संचालन के उद्देश्य का है
9 संपत्ति के असीमित संग्रहण के विरुद्ध समाजवादी संपत्ति को समाप्त करने की धारणा नहीं रखता है परंतु उसे सीमित रखने की धारणा रखता है समाजवाद की धारणाए की संपत्ति शोषण को जन्म देती है क्योंकि पूंजीपतियों द्वारा उद्योगों की वजह से सामान्य जनता को अपना दास बना लिया जाता है समाजवाद निजी संपत्ति को समाप्त करने की धारणा नहीं रखता है लेकिन इस बात की ध्यान रखते हैं कि निजी संपत्ति राज्य को अपना दास बना ले
10 श्रेष्ठ मानव जीवन का लक्ष्य समाजवाद राज्यों को एक सामाजिक सद्गुणों को शिक्षित करने वाली संस्था मानता है समाजवाद राज्य को बुराई फैलाने वाली या शोषण करने वाली संस्था नहीं मानता है समाजवादी विचारक मानते हैं कि पूरा समाज मिलकर ही समाज में शिक्षा स्वास्थ्य चिकित्सा मनोरंजन और सांस्कृतिक जीवन की स्थापना कर सकते हैं
समाजवाद के प्रमुख अवयव समाजवादी विचारधारा है जिसका विकास धीरे धीरे होना चाहिए वह जिसमें विकास की प्रक्रिया अपनाई जाने चाहिए जिससे पूरे समाज के विकास हो ना कि किसी व्यक्ति विशेष का समाजवाद सिर्फ श्रमिक मजदूर वर्ग की नहीं अपितु वरन सभी वर्गों की विकास की धारणा रखता है समाजवादी मानते हैं कि जनता का विकास करने के लिए
सावधानी रखना अति आवश्यक है तथा ंक्रांति की कोई आवश्यकता नहीं है
समाजवाद की प्रमुख तत्व
1 धनवानों की बढ़ती हुई संपत्ति पर कर कर लगाना जाना चाहिए और प्राप्त राशि से गरीबों के हित में कार्य होना चाहिए
2 काले धन का संग्रहण हर हाल में होगा जाना चाहिए
3 उद्योग में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया जाना चाहिए जिससे अर्थव्यवस्था पर राज्य का प्रभावी नियंत्रण हो सके
4 निजी उद्योगों का राज्य द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिए जिससे उनका संचालन सामाजिक हित की दृष्टि से किया जा सके
5 आर्थिक असमानता को दूर किया जाना चाहिए
6 सभी व्यक्तियों को उनकी योग्यता के अनुसार रोजगार मिलना चाहिए
7 आर्थिक विकास हेतू नियोजन को अपनाना चाहिए
समाजवाद के गुण 1 समाजवाद व्यक्ति व्यक्ति और समाज दोनों के हितों में समान रुप से कार्य करता है
2 यह पूंजीवाद तथा साम्यवाद दोनों का समान रुप से विरोध करता है तथा उनसे दूर रहने के लिए कहता है
3 समाजवाद व्यक्ति के व्यक्तित्व के समस्त विकास की धारणा लगता है तथा व्यक्तियों को नागरिक राजनीतिक तथा आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करता है
4 समाजवाद निजी संपत्ति को समाप्त करने की धारणा नहीं रखता है परंतु सीमित करने की रखता है
5 समाजवाद के अनुसार सत्ता जनता द्वारा निर्वाचित संसद के प्रति उत्तरदाई होना चाहिए
समाजवाद के अवगुण
1 समाजवाद की कोई स्पष्ट विचारधारा नहीं है- समाजवाद मैं अस्पृश्यता पाई जाती है क्योंकि समाजवादी विचारक मे से कुछ राष्ट्रीयकरण पर बल देते हैं तथा कुछ सामाजिकरण पर बल देते हैं निजी संपत्ति पर के साथ पर नियंत्रण होना चाहिए इस मुद्दे पर भी समाजवादी विचारकों में मतभेद है
2 विरोधी तत्वों का स्थान लोकतांत्रिक प्रणाली स्वतंत्रता में विश्वास रखता है तथा समाजवाद नियंत्रण में विश्वास रखता है इन दोनों ने एक दूसरे के विरोधी तत्वो का अपने विचार धाराओं के रूप में अपनाया है
3 प्राकृतिक संभावना के विरुद्ध समाजवादी विचारधारा समानता पर आधारित है परंतु प्रकृति की दृष्टि से सभी मनुष्य समान नहीं है उनमें बुद्धि शारीरिक शक्ति तथा चरित्र का अंतर होता है ऐसी स्थिति में जिन व्यक्तियों ने अपनी योग्यता परिश्रम के बल पर अधिक संपत्ति इकट्ठी कर ली है उन्हें अपनी इच्छा अनुसार संपत्ति रखने का अधिकार होना चाहिए परंतु समाजवाद योग्य व्यक्ति यो की संपत्ति आलसी व्यक्तियों में बांटना चाहता है
4 उपभोक्ताओं के हितों को नुकसान समाजवाद में उत्पादन पर राज्य का अधिकार हो जाने से उपभोक्ताओं की संप्रभुता समाप्त हो जाती है जिससे उपभोक्ताओं के हितों को नुकसान हो रहा है