Mewar Prajamandal मेवाड़ प्रजामंडल
Mewar Prajamandal मेवाड़ प्रजामंडल
संस्थापक — माणिक्यलाल वर्मा ।
प्रथम अध्यक्ष — बलवंत सिंह मेहता ।
अन्य सदस्य — भूरेलाल बया(उपाध्यक्ष) , रमेशचंद्र व्यास।
स्थापना — 24 अप्रैल 1938 में।
विशेषताएं :-
24 सितंबर 1938 को मेवाड़ प्रजामंडल को गैर कानूनी घोषित कर दिया गया।
मेवाड़ में भयंकर अकाल पड़ने पर प्रजामंडल ने गांधीजी के कहने पर 3 मार्च 1939 को सत्याग्रह स्थगित कर दिया । तथा “बेगार एवं बुलेट प्रथा” के विरुद्ध अभियान चलाया, जिसके फलस्वरुप मेवाड़ सरकार को इन दोनों प्रथाओं पर रोक लगानी पड़ी। यह मेवाड़ प्रजामंडल की पहली नैतिक विजय थी।
माणिक्यलाल वर्मा ने “मेवाड़ का वर्तमान शासक” पुस्तक की रचना की। इस पुस्तक में मेवाड़ में व्याप्त अव्यवस्था न तानाशाही की आलोचना की गई। और लोगों में जागृति लाने के लिए “मेवाड़ प्रजामंडल : मेवाड़ वासियों से एक अपील” नामक पर्चे भी बांटे गए।
मेवाड़ प्रजामंडल का 25 – 26 नवंबर 1941 को ‘माणिक्य लाल वर्मा’ की अध्यक्षता में पहला अधिवेशन आयोजित किया गया। जिसका उद्घाटन आचार्य ‘ जे.बी. कृपलानी’ ने किया ।
इस अधिवेशन में कांग्रेस की ओर से ‘विजय लक्ष्मी पंडित’ ने भाग लिया।
31 दिसंबर 1945 एवं 1 जनवरी 1946 को उदयपुर के सलेटिया मैदान में “अखिल भारतीय देशी लोक राज्य परिषद् ‘ का छठा अधिवेशन पंडित नेहरू की अध्यक्षता में हुआ।
24 जनवरी 1940 को माणिक्य लाल वर्मा की पत्नी नारायणी देवी व पुत्री को प्रजामंडल आंदोलन में भाग लेने के कारण राज्य से निष्कासित कर दिया गया।
भूरेलाल बया को ‘मेवाड़ के काले पानी’ के नाम से प्रसिद्ध ‘सराड़ा'( उदयपुर) के किले में कैद करके रखा गया ।
क्रांतिकारी रमेश चंद्र व्यास को ‘पहला सत्याग्रही’ बनकर गिरफ्तार होने का गौरव प्राप्त हुआ।
8 मई 1946 को मेवाड़ सरकार ने ठाकुर गोपाल सिंह की अध्यक्षता में ” संविधान निर्मात्री समिति ” का गठन किया।
3 मार्च 1947 को मेवाड़ के भावी संविधान की रूपरेखा की घोषणा की गई।
23 मई 1947 को मेवाड़ के वैधानिक सलाहकार ‘के. एम. मुंशी’ के द्वारा संवैधानिक सुधारों की नई योजना प्रस्तुत की गई , जिसमें 56 सदस्यों द्वारा विधानसभा के गठन का प्रावधान था।
18 अप्रैल 1948 को उदयपुर राज्य का राजस्थान में विलय हो गया।
Mewar Prajamandal
Founder – Manikyalal Verma.
First President – Balwant Singh Mehta.
Other Members – Bhurelal Baya (Vice President), Rameshchandra Vyas.
Established – 24 April 1938.
Features :-
On 24 September 1938, the Mewar Prajamandal was declared illegal.
After a severe famine in Mewar, the Prajamandal postponed the Satyagraha on 3 March 1939 at the behest of Gandhiji. And campaigned against “forced labor and bullet system”, as a result of which the Mewar government had to stop both these practices. This was the first moral victory of the Mewar Praja Mandal.
Manikyalal Varma authored the book “Present Ruler of Mewar”. This book criticized the chaos and dictatorship prevailing in Mewar. And to bring awareness to the people, pamphlets called “Mewar Prajamandal: An Appeal to the Mewar People” were also distributed.
The first session of Mewar Prajamandal was held on 25 – 26 November 1941 under the chairmanship of ‘Manikya Lal Verma’. Whose inauguration was Acharya ‘J.B. Kripalani ‘did.
‘Vijay Laxmi Pandit’ participated in this session from the Congress.
On December 31, 1945 and January 1, 1946, the sixth session of the “Akhil Bhartiya Lok Rajya Parishad” was held under the chairmanship of Pandit Nehru at Saletia Maidan in Udaipur.
On 24 January 1940, Narayani Devi and daughter of Manikya Lal Verma were expelled from the state for participating in the Prajamandal movement.
Bhurelal Baya was imprisoned in the fort of ‘Sarada’ (Udaipur), known as ‘Black Water of Mewar’.
The revolutionary Ramesh Chandra Vyas had the distinction of being arrested as the ‘first Satyagrahi’.
On 8 May 1946, the Mewar government formed the “Constitutional Committee” under the chairmanship of Thakur Gopal Singh.
On 3 March 1947, the outline of the future constitution of Mewar was announced.
On 23 May 1947, Mewar’s statutory advisor ‘K.K. The new scheme of constitutional reforms was presented by M. Munshi ‘, which provided for the constitution of the Legislative Assembly by 56 members.
On 18 April 1948, the Udaipur state was merged into Rajasthan.