बिजोलिया किसान आंदोलन Bijoliya-Kisan-Andolan
बिजोलिया किसान आंदोलन Bijoliya-Kisan-Andolan
बिजोलिया भीलवाड़ा जिले में हैं।
अधिकांश किसान धाकड़ जाति के थे।
1894 से पहले जागीरदार :-
राव गोविंदसिंह (सभी स्थितियां सामान्य)
1894 मे नया जागीरदार :- कृष्ण सिंह उर्फ किशन सिंह
लगभग 84 प्रकार की लाग बाग
किसानों की कमाई का लगभग 87% कर के रूप में
किसानों से बेकार ली जाती थी।
1897 में किसानों द्वारा मेवाड़ महाराणा को शिकायत की गई।
महाराणा द्वारा जांच के लिए राजस्व अधिकारी हामिद हुसैन को नियुक्त किया गया ।
हुसैन की रिपोर्ट पर महकमा खास ने कोई कार्यवाही विशेष नहीं की।
1899 – 1900 में भयंकर अकाल पड़ा (छप्पनिया अकाल)
1903 मे राव कृष्णसिंह द्वारा “चँवरी कर” लगाया गया ।
चँवरी कर :- इसमें हर व्यक्ति को अपनी पुत्री के विवाह के मौके पर ₹5 ठिकाने को जमा कराने पड़ते थे।
“चँवरी कर” का प्रभाव :-
किसानों ने 2 साल तक अपनी बेटियों की शादियाँ ही नहीं करवाई।
विरोध का परिणाम :- चँवरी कर उठा लिया गया साथ ही कुछ अन्य रियायतें भी मिली।
1906 :- नया जागीरदार राव कृष्ण सिंह बना।
इसने सभी पुरानी रियायतें खत्म कर दी।
“तलवार बंधाई” नामक नया कर लगाया।
1913 :-
साधु सीतारामदास, फतहकरण चारण और ब्रह्मदेव के नेतृत्व में विरोध किया गया।
इसमें जागीर क्षेत्र में हल नहीं चलाया गया।
चारण और ब्रह्मदेव भूमिगत हो गए और साधु सीतारामदास को पुस्तकालय की नौकरी से हटा दिया गया।
1917 :-
1917 में साधु सीतारामदास ने विजय सिंह पथिक को आमंत्रित कर आंदोलन का नेतृत्व सौंप दिया।
1917 हरियाली अमावस्या :- बैरीसाल गांव में “ऊपरमाल पंच बोर्ड” की स्थापना की गई।
तिलक में “मराठा” समाचार पत्र में संपादकीय लिखा एवं मेवाड़ महाराणा फतेह सिंह को पत्र लिखा।
माणिक्य लाल वर्मा के गीत “पंछीड़ा” द्वारा जन जागरण फैलाया गया।
भंवरलाल स्वर्णकार ने जन जागरण के लिए कविताएं लिखी।
विजय सिंह पथिक ने “ऊपरमाल सेवा समिति” की स्थापना की।
“ऊपरमाल का डंका” नामक पंचायत का एक पत्र निकलवाया।
“प्रताप” के संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी को चांदी की राखी भेजी।
1919 :- उदयपुर राज्य सरकार ने मांडलगढ़ हाकिम बिंदुलाल भट्टाचार्य की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया लेकिन कोई कार्यवाही नहीं की।
1922 राजस्थान के A.G.G. रॉबर्ट हालैण्ड ने 35 लगानों को माफ कर दिया।
ठिकानों ने चालाकी से इन सभी को समाप्त कर नया भूमि बंदोबस्त लगाया।
1927 :-
1927 में नये बंदोबस्त के विरोध में किसानों ने ऊंची दरों के विरोध में पथिक से परामर्श कर उसके कहने पर अपनी माल भूमि छोड़ दी, किंतु उम्मीदों के विपरीत ठिकानों द्वारा उनकी भूमि की नीलामी कर दी गई और उनकी भूमि को नए किसान मिल गए।
किसानों की भूमि छीन जाने के कारण इसके लिए उन्होंने विजय सिंह पथिक को जिम्मेदार ठहराया और आंदोलन से बाहर कर दिया।
किंतु आंदोलन जारी रहा और 1941 तक चलता रहा।