Bhil Vidroh भील विद्रोह
भील विद्रोह अट्ठारह सौ अट्ठारह अट्ठारह सौ साठ
1818 में उदयपुर राज्य के भीलों ने विद्रोह किया
1818 में भीलों के विद्रोह का कारण:-
(1) भीलो पर कर थोपना
(2) अंग्रेजों की भील दमन नीति
(3) उदयपुर का आंतरिक प्रशासन जेम्स टॉड के पास जाना और उसके द्वारा भीलो पर नियंत्रण का प्रयास करना।
(4) देशी सेनाओं को भंग कर देना, जिसमें भील नियुक्त थे जिससे उनका बेरोजगार हो जाना
(5) भीलो द्वारा गांवों से “रखवाली” और यात्रियों से “बोलाई” नामक कर वसूलने के अधिकारों को छीन लेना।
सन 1818 के अंत में उदयपुर राज्य के भीलो ने अपने आपको स्वतंत्र घोषित कर दिया और यह चेतावनी दी कि यदि सरकार उनके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करेगी तो वह विद्रोह करने के लिए मजबूर हो जाएंगे।
भीलो का विद्रोह शुरू हो गया और निरंतर प्रयासों के बाद दिसंबर 1823 तक ब्रिटिश सरकार और रियासत की संयुक्त सेनाएँ भील विद्रोह को दबाने में सफल हो गई।
उदयपुर राज्य के भील विद्रोह से प्रभावित होकर बांसवाड़ा और डूंगरपुर राज्य में भी भील विद्रोह के सुर उठने लगे चीन के दमन के लिए अंग्रेजी सेना भेजी गई लेकिन संघर्ष प्रारंभ होने से पहले ही भील मुखियाओं ने मई 1825 में अंग्रेजों से समझौता कर लिया।
उदयपुर राज्य के भीलों ने कभी इस प्रकार के समझौतों को स्वीकार नहीं किया ना ही कभी अंग्रेजों की शर्तें मानी।
1836 में बांसवाड़ा में हुए भील उपद्रव को बांसवाड़ा के महारावल ने नियंत्रित किया था।
अंग्रेजों ने मेरवाड़ा बटालियन की पद्धति पर भीलो के विरुद्ध लंबी सैनिक योजना तैयार की जिसमें भीलो पर नियंत्रण स्थापित करने के उद्देश्य से भीलो की सेना का गठन किया।
अप्रैल 1841 में “मेवाड़ भील कोर” का गठन किया गया।
मेवाड़ भील कोर का मुख्यालय उदयपुर का खेरवाड़ा था। मेवाड़ के भील क्षेत्रों में ‘खेरवाड़ा’ एवं ‘कोटडा’ नामक स्थानों पर दो छावनियां स्थापित की गई।
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1844 से 1846 के मध्य छुटपुट विद्रोह हुए किंतु उन्हें दबा दिया गया।
दिसंबर 1855 में उदयपुर के कालीबास में भील विद्रोही हो गए।
1 नवंबर 1856 को महाराणा ने मेहता सवाई सिंह को सेना देकर भेजा जिसने भीलों के गांव में आग लगा दी और भारी संख्या में भीलों को मौत के घाट उतार दिया गया।
1861 मे उदयपुर के खेरवाड़ा क्षेत्र में भीलों ने उपद्रव प्रारंभ किया।
1807 में कोटडा के भील हिंसक गतिविधियों में शामिल हो गए।
1872 से 1875 के बीच बांसवाड़ा में भील विद्रोह की बहुत सारी घटनाएं हुई।
1881 – 1882 में उदयपुर राज्य के भीलो ने अंग्रेजों एवं उदयपुर राज्य के विरुद्ध विद्रोह किया जो 19वीं शताब्दी का सबसे भयानक भील विद्रोह सिद्ध हुआ।
26 मार्च 18 सो 81 को राज्य के प्रतिनिधि मामा अमानसिंह और अंग्रेज प्रतिनिधि लोनारगन के नेतृत्व में सेनाएं बारापाल पहुंची और 27 मार्च को सैकड़ों भीलो की झोंपडियौं को जलाकर राख कर दिया गया।
रिखवदेव मे डेरा डाले सेना को लगभग 800 भीलो ने घेर लिया।
25 अप्रेल 1881 को भी लोग के साथ समझौता हो गया।
उदयपुर राज्य में इस समय एक बार भील विद्रोह शांत हो गया था।
किंतु डूंगरपुर और बांसवाड़ा में स्थितियां भी सामान्य नहीं रही।
डूंगरपुर और बांसवाड़ा राज्य में गोविंद गिरी के नेतृत्व में शक्तिशाली भील आंदोलन प्रारंभ हो गया
NOTE :- गोविंद गिरी डूंगरपुर में बैठता नामक गांव का बंजारा जाति का निवासी था यह छोटा किसान था गरीबी के कारण और पुत्र और पत्नी की मृत्यु के बाद वह सन्यासी बन गया बूंदी अखाड़े के साधु राजगिरी गोविंद गिरी के गुरु थे।
गोविंद गिरी ने धूनी स्थापित कर निशान (ध्वज) लगाकर आस पास के भीलो को आध्यात्मिक शिक्षा देना प्रारंभ कर दिया।
गोविंद गिरी ने समाज एवं धर्म सुधार आंदोलन प्रारंभ किया जो आर्थिक एवं राजनीतिक आंदोलन में बदल गया।
गोविंद गिरी ने भगत पंथ की स्थापना की।
गोविंद गिरी के बढ़ते प्रभाव को देखकर राज्य में उन्हें राज्य और जागीर की सीमाओं से बाहर जाने पर मजबूर किया गोविंद गिरी गुजरात के ईडर राज्य में एक कृषक के रूप में काम करने लगे ।
24 फरवरी 1910 को ईडर राज्य के पाल-पट्टा में भील आंदोलन से एक ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई जिसमें वहां के जागीरदार को भीलों के साथ एक समझौता करना पड़ा जिसमें 21 शर्तें थी यह गोविंद गिरी के आंदोलन की सबसे बड़ी सफलता थी।
1911 में गोविंद गिरी अपने मूल स्थान बेडसावास आ गए।
उन्होंने अपने पंथ को नए रूप से संगठित किया और प्रत्येक भील गाँव में अपने धूनी स्थापित की और उसकी रक्षा हेतु कोतवाल नियुक्त किए। यह कोतवाल धार्मिक मुख्या ही नहीं थे, भीलों के मध्य विवादों का निपटारा भी करते थे। इस प्रकार गोविंद गिरी की समानांतर सरकार चलने लगी।
बेडसा गोविंद गिरी की गतिविधियों का केंद्र बन गया।
गोविंद गिरी का प्रभाव हर तरफ फैलने लगा और इससे डरकर 1913 में डूंगरपुर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और उनका सामान भी जप्त कर लिया और उन्हें पंथ छोड़ने के लिए धमकाया गया।
गोविंद गिरी में भील राज की स्थापना करने की योजना बनाई और अक्टूबर 1913 में मानगढ़ पहाड़ी पर पहुंचे तथा भीलों को पहाड़ी पर एकत्रित होने का संदेश भी भेजा।
गोविंद गिरी के आह्वान पर भारी संख्या में भीड़ मानगढ़ पहाड़ी पर पहुंचने लगे और इससे डरकर सभी राज्यों ने अंग्रेजी अधिकारियों से मानगढ़ पर एकत्रित होने वाले भी लोगों को कुचलने की प्रार्थना की 6 से 10 नवंबर 1913 के बीच वार्ता के प्रयास रहे किंतु सभी वार्ताओं के असफल होने पर 17 नवंबर 1913 को अंग्रेजी फौजियों ने मानगढ़ की पहाड़ी पर आक्रमण कर दिया और आधुनिक हथियारों की मदद से महज 1 घंटे में भी लोग को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया गया इस कार्यवाही में 100 दिन मारे गए और 900 किलो को बंदी बना लिया गया इस घटनाक्रम में गोविंद गिरी को भी बंदी बना लिया गया था गोविंद गिरी को पहले तो आजीवन कारावास की सजा दी गई किंतु उसे 10 वर्ष की सजा में बदल दिया गया और 7 वर्ष बाद ही इस शर्त पर रिहा कर दिया गया कि वह सुंदर डूंगरपुर बांसवाड़ा कुशलगढ़ और इधर राज्य में प्रवेश नहीं करेंगे इसके बाद गोविंद गिरी सरकारी निगरानी में अहमदाबाद के पंचमहल जिले में जालौर नाम के गांव में रहने लगे और वहीं पर रहकर उन्होंने अपने प्रवचन जारी रखें।
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