Rajasthan ka Itihas राजस्थान का इतिहास
राजस्थान प्राचीन काल में विभिन्न जनपदों एवं अंचलों में विभक्त था।
महाकाव्य कालीन राजस्थान में चार भाग थेे :-जांगल, मरूकांंतर, मत्स्य और शूरसेन।
मरू आर्यों का प्रारंभिक जनतंत्र था।
जांगल जनपद की राजधानी अहिछत्रपुर थी।
मत्स्य जनपद का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।
मत्स्य जनपद की राजधानी विराटनगर (बैराठ) थी।
शूरसेन जनपद की राजधानी मथुरा थी।
शिवि जनपद की राजधानी मज्झमिका या माध्यमिका थी।
शिवि जनपद को मेदपाट तथा प्राग्वाट भी कहा जाता था।
पांचवी सदी के बाद हूण आक्रमणों ने गणतंत्रीय जनपदों की व्यवस्था को समाप्त कर दिया।
बृहदसंहिता नामक ग्रंथ में जनपदों के पतन की चर्चा है।
प्राचीन शिबि जनपद वाले क्षेत्र को मेवाड़ कहा गया।
दक्षिणी राजस्थान के डूंगरपुर , बांसवाड़ा के भूभाग को बागड़ कहा गया और इसकी बोली को बागडी कहा गया।
बूंदी और कोटा का क्षेत्र हाडोती कहलाता है।
जयपुर और उसके आसपास के क्षेत्र को ढूंढाड़ कहा जाता है, और इस क्षेत्र की भाषा ढूंढाडी़ कहलाती है।
अलवर भरतपुर का मेल जाति के अधिक के वाला क्षेत्र मेवात कहलाता है
मेवाती यों का प्रसिद्ध नायक हसन खान मेवाती था
जैसलमेर को माल या वल्ल कहा जाता था।
जोधपुर का दक्षिणी भाग गुर्जरत्रा कहलाता था।
प्रतापगढ़ को कांठल कहा जाता था ।
झालावाड़ का क्षेत्र मालवा के नाम से पहचाना जाता है।
चूरु , झुंझुनू और सीकर का क्षेत्र शेखावाटी के नाम से जाना जाता है।
ब्यावर अजमेर का क्षेत्र मेरवाड़ा के नाम से जाना जाता है।
ऋग्वेद को प्रथम वेद माना जाता है ।
भारत में शक जाति के शासकों को क्षत्रप कहा जाता था जिसका अर्थ प्रांत का मुखिया/ राज्यपाल होता है।
अध्याय 3 इतिहास जानने के स्त्रोत
Rajasthan ka Itihas