Subhashitani Class 7 Sanskrit Chapter 1 सुभाषितानि

Subhashitani Class 7 Sanskrit Chapter 1 सुभाषितानि

Subhashitani Class 7 Sanskrit Chapter 1 सुभाषितानि

पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम्।

मूढः पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते॥

पृथिव्यां धरती पर
त्रीणि तीन ही 
रत्नानि रत्न हैं
जलमन्नं जल और अन्न 
सुभाषितम् सुवचन 
मूढः मूर्खों
पाषाणखण्डेषु पत्थर के टुकड़ों में
रत्नसंज्ञा रत्न का नाम
विधीयते दिया जाता है

सरलार्थ :

पृथ्वी पर जल, अन्न और सुवचन ये तीन ही रत्न हैं परंतु मूर्खों  द्वारा पत्थर के टुकड़ों को रत्न  नाम दिया जाता है। 

 

सत्येन धार्यते पृथ्वी सत्येन तपते रविः।

सत्येन वाति वायुश्च सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम्॥

 

सत्येन सत्य से 
धार्यते  धारण की जाती है
पृथ्वी  पृथ्वी 
सत्येन  सत्य से
तपते  जलता है
रविः सूरज 
सत्येन  सत्य से
वाति  बहता है
वायुश्च  और वायु
सर्वं  सब कुछ
सत्ये  सत्य में
प्रतिष्ठितम् स्थित है

 

 सरलार्थ :

सत्य से पृथ्वी धारण की जाती है। सत्य से सूरज तपता है और सत्य से ही वायु प्रवाहित होती है। सब कुछ सत्य में समाहित (स्थित) है।

 

दाने तपसि शौर्ये च विज्ञाने विनये नये।

विस्मयो न हि कर्त्तव्यो बहुरत्ना वसुन्धरा ॥

 

दाने   
तपसि  तपस्या में
शौर्ये  बल में
च   
विज्ञाने  विशेष ज्ञान में
विनये   
नये नीति में
विस्मयो  आश्चर्य 
न   
हि   
कर्त्तव्यो  करना चाहिए
बहुरत्ना  अनेक रत्नों वाली
वसुन्धरा पृथ्वी 

 

सद्भिरेव सहासीत सद्भिः कुर्वीत सङ्गतिम्।

सद्भिर्विवादं मैत्री च नासद्भिः किञ्चिदाचरेत् ॥

 

सद्भिरेव   
सहासीत   
सद्भिः   
कुर्वीत   
सङ्गतिम्  
सद्भिर्विवादं   
मैत्री   
च   
नासद्भिः   
किञ्चिदाचरेत्   

 

धनधान्यप्रयोगेषु विद्यायाः संग्रहेषु च।

आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत्॥

धनधान्यप्रयोगेषु   
विद्यायाः   
संग्रहेषु   
 
आहारे   
व्यवहारे   
च   
त्यक्तलज्जः   
सुखी   
भवेत्  

 

क्षमावशीकृतिर्लोके क्षमया किं न साध्यते।

शान्तिखड्गः करे यस्य किं करिष्यति दुर्जनः॥

 

क्षमावशीकृतिर्लोके   
क्षमया   
किं   
न   
साध्यते  
शान्तिखड्गः   
करे   
यस्य   
किं   
करिष्यति   
दुर्जनः  

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