ध्वनि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
पाठ 1 ध्वनि – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
अभी ना होगा……… … प्रत्यूष मनोहर
प्रसंग प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक वसंत की कविता ध्वनि से ली गई है इसके रचयिता उस कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला है प्रस्तुत पंक्तियों में कभी प्रभात बेला में नींद से हल शाही कलियों को जगाने का वर्णन कर रहे हैं
व्याख्या प्रस्तुत पंक्तियों में आत्मविश्वास से युक्त कवि कहते हैं कि अभी उसका अंत नहीं होगा क्योंकि अभी तो उसके मन रूपी उपवन में नवीन और कोमल बसंत का आगमन हुआ है इस वसंत के आगमन से उसका मन रूपी ओवन हरा-भरा और पुष्पित हो गया है इस से कवि का जीवन उत्साह और उमंग से भर गया है और उसका अंत नहीं होगा
दूसरे शब्दों में वसंत के आने से पेड़ पौधों में नहीं कोई लेट साथ आएं और कलियां आ गई हैं जिससे उनकी कमल का बढ़ गई हैं अथार्त पतझड़ के कारण जो पेड़ पौधे पत्र पुष्प विहीन हो गए थे वह अब कोमल शरीर वाले हो गए हैं रात भर सोने के कारण नींद से अलसाई कलियों पर कवि अपने स्वप्न भरे कोमल हाथ शेयर कर उन्हें प्रातः काल को मनोहर मनाने के लिए जागृत करना चाहता है अथार्थ कवि आलस्य डूबे लोगों में उत्साह एवं नव उमंग के भावों का संचार करना चाहते हैं
काव्य सौंदर्य
1 भाषा सहज और सरल है
2 खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है
3 कविता छायावादी काल की है
4 अभी-अभी हरे हरे में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है वसंत ऋतु का मनोहर चित्रण किया गया है