Maharana Pratap महाराणा प्रताप




Maharana Pratap महाराणा प्रताप



महाराणा प्रताप का जन्म विक्रम संवत 1597 ज्येष्ठ शुक्ला द्वितीया को हुआ।

महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 रविवार को हुआ।

महाराणा प्रताप का जन्म कुंभलगढ़ दुर्ग के बादल महल में हुआ ।

महाराणा प्रताप के पिता का नाम महाराणा उदयसिंह था।

महाराणा प्रताप की माता का नाम जैैवंता बाई था।

महाराणा प्रताप की मां पाली के शासक अखेराज सोनगरा चौहान की पुत्री थी।

महाराणा प्रताप का विवाह 1557 ईसवी में अजब दे पवांंर के साथ हुआ।

महाराणा प्रताप के पुत्र का नाम अमरसिंह था (जन्म 16 मार्च 1559)

महाराणा प्रताप के पिता की मृत्यु होली के दिन हुई (गोगुंदा में)



32 वर्ष की आयु में महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक हुआ। (महादेव बावड़ी पर)

महाराणा उदयसिंह ने अपने पुत्र जगमल को अपना उत्तराधिकारी नामित किया था लेकिन उसे मेवाड़ के वरिष्ठ सामंतों ने उसे अपदस्थ कर दिया था।

1570 में अकबर के नागौर दरबार में महाराणा प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की।

अकबर ने महाराणा प्रताप के पास चार शिष्टदल भेजे :-

(1)प्रथम दल नवंबर 1572 में जलाल खां

(2) दूसरा दल जून 1573 में आमेर शासक मानसिंह

(3) तीसरा दल अक्टूबर 1573 में भगवंत दास

(4) चौथा दल 14 दिसंबर 1573 में टोडरमल

अकबर के चारों शिष्टमंडल है असफल रहे।

शिष्टमंडलों की असफलता पर अकबर ने महाराणा प्रताप को अजमेर में बंदी बनाने की योजना बनाई।

महाराणा प्रताप को जिस किले में बंदी बनाने की योजना बनाई गई, वहीं पर अंग्रेजों का शस्त्रागार था तथा वर्तमान में वहां संग्रहालय स्थित है, जिसे मैगजीन कहते हैं।



18 जून 1576 में अकबर की सेना के साथ मानसिंह व आसफखां ने हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप के बीच युद्ध किया।

मुगल सेना के साथ आया इतिहासकार बँँदायूनी भाग खड़ा हुआ।

मुगलों की आरक्षित फौज के प्रभारी मिहत्तर खांं ने अकबर द्वारा स्वयं शाही सेना लेकर आने की अफवाह फैला दी।

मानसिंह ‘मरदाना’ नाम के हाथी पर बैठा था जिस पर महाराणा प्रताप ने ‘चेतक’ घोड़े पर सवार होकर हमला किया।

मानसिंह ने हाथी के हौदेे में छुप कर अपनी जान बचाई और उसका अंगरक्षक मारा गया इसमें चेतक की टांग कट गई।

बड़ी सादड़ी के झाला मन्ना ने शाही चिह्न पहनकर युद्ध लड़ा और महाराणा प्रताप को वहां से सुरक्षित निकाल दिया।

झाला मन्ना वीरगति को प्राप्त हो गए और बलीचा गांव के नाले के पास चेतक भी स्वर्ग सिधार गया।

महाराणा प्रताप का हाथी ‘रामप्रसाद’ मुगल सेना के हाथ लग गया, अकबर ने उसका नाम ‘रामप्रसाद’ से बदलकर ‘पीर प्रसाद’ कर दिया।

महाराणा प्रताप को ना पकड़ पाने से नाराज होकर अकबर ने मानसिंह एवं आसफखां की ड्योढ़ी बंद कर दी।



फरवरी 1577 में अकबर स्वयं लड़ा।

अक्टूबर 1577 से नवंबर 1579 तक शाहबाज ने (तीन बार) अभियान चलाये।

महाराणा प्रताप ने कमलनाथ पर्वत के पास आवरगढ़ को अपनी अस्थायी रााजधानी बनाया।

1580 में अकबर ने अब्दुल रहीम खानखाना को लड़ने भेजा, वह सह परिवार आया।

महाराणा प्रताप के पुत्र अमरसिंह ने उसके परिवार को बंदी बना लिया, जिसे प्रताप ने ससम्मान छुड़वा दिया।

5 दिसंबर 1584 को आमेर के जगन्नाथ कछवाहा ने हमला किया जो  असफल रहा।

1585 में महाराणा प्रताप ने छप्पन के लूणा चावंडिया को पराजित किया और चावंड को अपनी आपातकालीन राजधानी बनाया।

19 जनवरी 1597 को चावंड में महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गई।

बडोली गांव में महाराणा प्रताप का दाह संस्कार किया गया।

खेजड़ बांध के किनारे पर महाराणा प्रताप की 8 खंभों की छतरी बनाई गई।

अकबर के दरबार के दुरसा आढा़  ने महाराणा की मृत्यु पर महाराणा की शान में कुछ पंक्तियां लिखी थी।



हल्दीघाटी को कर्नल जेम्स टॉड ने “मेवाड़ की थर्मोपोली” कहा।

दिवेर को कर्नल जेम्स टॉड ने “मेवाड़ का मैराथन” कहा।

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