न्याय – अर्थ, परिभाषा, प्रकार Nyaay arth paribhaasha prakaar
न्याय nyaay
न्याय का अर्थ
न्याय व्यक्ति का आत्मीय गुण हैं और नियमों का पालन ही न्याय है।
प्लेटो का न्याय संबंधी विचार
पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन में न्याय की व्याख्या सर्वप्रथम प्लेटो ने की।
प्लेटो के अनुसार न्याय- न्याय मनुष्य का आत्मीय गुण तथा न्याय में गुण हैं, जो अन्य गुणों के मध्य सामंजस्य स्थापित करता है, अपनी पुस्तक “रिपब्लिक” में न्याय की व्याख्या की हैं।
प्लेटो के अनुसार न्याय के रूप
प्लेटो ने न्याय के दो रूप प्रदान किए हैं – 1 व्यक्तिगत न्याय 2 सामाजिक न्याय
1 व्यक्तिगत न्याय
व्यक्ति की आत्मा में विद्यमान या व्यक्तिगत के विभिन्न क्षेत्रों में न्याय का विकास करता है। प्रत्येक व्यक्ति को वही कार्य करना चाहिए, जिसके लिए वे प्राकृतिक रूप से समर्थ है।
2 सामाजिक न्याय
राज्य में व्याप्त न्याय समाज के तीन वर्गों – शासक वर्ग, सैनिक वर्ग और उत्पादक वर्ग में सामंजस्य स्थापित करता है। राज्य को किसी दूसरे के कार्य में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
अरस्तु के न्याय संबंधी विचार
अरस्तु के अनुसार न्याय का सरोकार मानवीय संबंधों से हैं।
अरस्तु के अनुसार न्याय के रूप – 1 वितरणात्मक न्याय 2 सुधारात्मक न्याय
1 वितरणात्मक न्याय
अरस्तु के अनुसार शक्ति व सत्ता का वितरण व्यक्ति की योग्यता व सहयोग के अनुसार होना चाहिए। उन्हीं लोगों को सत्ता सौंपी जानी चाहिए, जो योग्यता व क्षमता रखते हैं।
2 सुधारात्मक न्याय
अरस्तु के अनुसार सुधारात्मक न्याय से अर्थ है कि ऐसा न्याय जो नागरिकों के अधिकार की अन्य लोगों द्वारा हनन के रोकथाम पर बल देता है। राज्य का कर्तव्य है कि वह व्यक्ति के जीवन, संपत्ति, सम्मान में स्वतंत्रता की रक्षा करें।
मध्य काल में न्याय संबंधी विचारक
1 ओगस्टाइन के अनुसार व्यक्ति द्वारा ईश्वरी राज्य के प्रति कर्तव्य पालन ही न्याय है।
2 थॉमस के अनुसार न्याय एक व्यवस्थित एवं अनुशासित जीवन व्यतीत करने का सुझाव देती है।
आधुनिक काल में न्याय संबंधी विचारक
1 डेविड ह्यूम के अनुसार न्याय नियमों की पालना है।
2 जेरेमी बेंथम के अनुसार अधिकतम लोगों का अधिकतम सुख ही न्याय है।
3 जॉन स्टुअर्ट मिल के अनुसार न्याय सामाजिक उपयोगिता का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है।
जॉन रोल्स के न्याय संबंधी विचार-
अपनी पुस्तक “द थ्योरी ऑफ जस्टिस” मे सामाजिक न्याय की व्याख्या की है। जॉन रोल्स लोकतंत्र में न्याय के दो मौलिक नैतिक सिद्धांतों की स्थापना करते हैं –
1 अधिकतम स्वतंत्रता स्वयं सुरक्षा के लिए आवश्यक है, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को उतनी ही स्वतंत्रता मिलनी चाहिए जो दूसरों को प्राप्त हैं।
2 व्यक्ति में समाज द्वारा ऐसी स्थितियां स्थापित की जाए, जो सबके लिए कल्याणकारी हो।
भारतीय राजनीति चिंतन में न्याय प्राचीन भारतीय राजनीति में सामाजिक न्याय में विद्यमान धर्मों में प्लेटो के न्याय सिद्धांत काफी मिलते-जुलते हैं प्लेटो ने न्याय के राजनीतिक व सामाजिक रुप को स्वीकार किया तथा भारतीय न्याय के कानूनी रूप को स्वीकार किया है मनु कौटिल्य शुक्र भारद्वाज विदुर सोमदेव आदि भारतीय न्याय के प्रतिपादक है
न्याय के विविध रूप
1 नैतिक न्याय
प्राकृतिक नियमों तथा प्राकृतिक अधिकारों के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करना नैतिक न्याय कहलाता है। सत्य, करुणा, अहिंसा आदि गुणों को नैतिक सिद्धांत मानते हैं।
2 कानूनी न्याय
राजनीतिक मैं कानूनी व्यवस्था को कानूनी न्याय कहा जाता है, इसमें वह सभी नियम में कानून शामिल होते हैं, जिन्हें एक व्यक्ति खुद अपनाता है।
3 राजनीतिक न्याय
राजनीतिक न्याय समानता और समता पर आधारित होता है। सभी व्यक्तियों का समान अधिकार, अवसर देने चाहिए। राजनीतिक न्याय भेदभाव व असमानताओं को स्वीकार नहीं करता है। न्याय केवल लोकतंत्र में पाया जाता है। वयस्क मताधिकार, विचार भाषण की स्वतंत्रता, बिना भेदभाव के अवसर की समानता आदि राजनीतिक न्याय के प्रमुख तत्व है।
4 सामाजिक न्याय
समाज में व्यक्तियों में भेदभाव न करना तथा प्रत्येक व्यक्ति को अपने विकास के लिए अवसर देना, सामाजिक न्याय कहलाता है।
जॉन रोल्स ने सामाजिक न्याय को प्राथमिकता दी है। सामाजिक न्याय में समानता और स्वतंत्रता को अपनाया जाता है।
5 आर्थिक न्याय
आर्थिक न्याय का उद्देश्य आर्थिक समानता स्थापित करना होता है। आर्थिक न्याय धनसंपदा पर उत्पन्न असमानता का विरोध करता है तथा इसे कम करने पर बल देता है।
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