parivartanasheel anupaaton ka niyam
परिवर्तनशील अनुपातों का नियम
parivartanasheel anupaaton ka niyam परिवर्तनशील अनुपातों के नियम की तीन अवस्थाओं को रेखा चित्र की सहायता से समझाइए।
परिवर्तनशील अनुपातों का नियम:-
यह नियम अल्पकाल में लागू होता है। इस नियम के अनुसार परिवर्तनशील साधनों की उत्तरोत्तर इकाइयां बढ़ाने पर एक सीमा के बाद सीमांत उत्पादकता में कमी होने लगती हैं।
मान्यताएं :–
(1) यह नियम केवल अल्पकाल में लागू होता है।
(2) तकनीक स्थिर मानी जाती है।
(3) स्थिर एवं परिवर्तनशील दोनों प्रकार के साधन पाए जाते हैं।
(4) परिवर्तनशील साधनों की सभी इकाइयां समरूप होती है।
(1) बढ़ते औसत उत्पाद की प्रथम अवस्था :-
रेखा चित्र में ox अक्ष पर परिवर्तनशील साधन की इकाइयां व oy अक्ष पर TP, MP, व AP को दर्शाया है। उत्पादन की प्रथम अवस्था में, स्थिर व परिवर्तनशील साधनों के अनुकूलतम सामंजस्य के कारण सीमांत उत्पाद बढ़ता है जिसके कारण कुल उत्पाद भी बढ़ती हुई दर से बढ़ता है तथा साथ ही औसत उत्पाद भी बढ़ता है। यह अवस्था O से M तक उच्चतम उत्पादन अवस्था है।
(2) घटते प्रतिफल की अवस्था:-
उत्पादन की यह अवस्था बिंदु L से N तक है जिस स्थिति में औसत उत्पाद व सीमांत उत्पाद दोनों घट रहे हैं क्योंकि स्थिर साधनों का परिवर्तनशील साधनों द्वारा पूर्ण उपयोग कर लिया गया है तथा इनकी अनुकूलता भी इस अवस्था में समाप्त हो गई है। इस स्थिति में TP (कुल उत्पाद) घटती हुई दर से बढ़ता है।
(3) ऋणात्मक प्रतिफल की अवस्था:-
यह अवस्था N बिंदु के बाद पाई जाती है जहां से औसत उत्पाद ऋणात्मक स्थिति में आ जाता है तथा कुल उत्पाद घटने लगता है। इसका कारण है कि स्थिर साधनों पर परिवर्तनशील साधनों का दबाव बहुत अधिक बढ़ जाता है जिसके कारण वे एक दूसरे के लिए बाधक बन जाते हैं। इस अवस्था में उत्पादन करने पर उत्पादक को हानि होती है।
एक उत्पादक उत्पादन की द्वितीय अवस्था तक ही उत्पादन करेगा क्योंकि उसके बाद उसे हानि होगी।
parivartanasheel anupaaton ka niyam