Pratisthaapan Dar Hraasamaan Visthaapan

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Pratisthaapan Dar Hraasamaan Visthaapan

” वस्तुओं के बीच प्रतिस्थापन , — प्रतिस्थापन दर , ह्यासमान विस्थापन दर ”
* प्रतिस्थापन :– उपभोक्ता किसी वस्तु की मात्रा बढ़ाने के लिए दूसरी वस्तु की मात्रा को कम करता है। उपभोक्ता द्वारा इस तरह एक वस्तु की मात्रा बढ़ाने के लिए दूसरी वस्तु की मात्रा को कम करना पड़ता है, क्योंकि उपभोक्ता की आय सीमित होती है।
अतः एक वस्तु की मात्रा में कमी करके दूसरी वस्तु की मात्रा को बढ़ाना ही प्रतिस्थापन कहलाता है।
उदाहरण :– एक व्यक्ति चाय और कॉफी में से यदि कॉफी की मात्रा बढ़ाना चाहे तो, उसे चाय की मात्रा में कमी करनी पड़ेगी । चाय की मात्रा घटाकर कॉफी की मात्रा बढ़ाना ही प्रतिस्थापन कहलाता है।
* प्रतिस्थापन की दर :– प्रतिस्थापन में किसी वस्तु की एक इकाई मात्रा बढ़ाने के लिए दूसरी वस्तु की जितनी मात्रा से त्यागनी पड़ती है, वही उसकी प्रतिस्थापन की दर कहलाती है।
वस्तु एक की मात्रा बढ़ाने के लिए वस्तु दो में कमी करनी पड़ेगी। दोनों वस्तुओं की मात्राओं में होने वाले परिवर्तनों के अनुपात को प्रतिस्थापन की दर कहते हैं।
इसे गणितीय सूत्र में निम्नलिखित रूप से व्यक्त करते हैं :– प्रतिस्थापन की दर = वस्तु – 1 की मात्रा में परिवर्तन/ वस्तु – 2 की मात्रा में परिवर्तन।
उदाहरण :– वस्तु 1 की मात्रा में एक इकाई बढ़ाने के लिए यदि वस्तु 2 की 5 इकाइयां त्यागनी पड़े तो प्रतिस्थापन की दर 5 / 1 = 5 होगी ।
* ह्यासमान विस्थापन की दर :– वस्तु 1 की अतिरिक्त इकाइयों के लिए वस्तु 2 की कुछ मात्राओं का त्याग करना विस्थापन कहलाता है।
वस्तु एक कि प्रत्येक मात्रा के बदले त्यागी जाने वाली वस्तु दो की मात्राएं हमेशा समान नहीं रहती है बल्कि प्रतिस्थापन के प्रत्येक चरण में यह निरंतर कम होती जाती है । प्रतिस्थापन की इस घटती हुई दर को ही ‘ह्यासमान विस्थापन की दर’ कहा जाता है।
प्रश्न विस्थापन की दर ह्यासमान क्यों होती है?
विस्थापन के प्रत्येक चरण में वस्तु 1 की मात्रा पूर्व की अपेक्षा बढ़ती जाती है, जिससे वस्तु एक को प्राप्त करने की उपभोक्ता की तीव्रता कम हो जाती है, और प्रत्येक चरण में वस्तु -2 की मात्रा पूर्व की अपेक्षा कम होने से वस्तु -2 को त्यागने की तत्परता में भी कमी आ जाती है। परिणामस्वरूप प्रतिस्थापन दर प्रत्येक चरण पर घटती जाती है , जिसे ‘ह्यासमान विस्थापन की दर’ कहा जाता है।
नोट :– इसे ह्यासमान विस्थापन दर के अतिरिक्त ‘घटती हुई सीमांत दर ‘ भी कहते हैं , तथा ऐसे अधिमानों को ‘अवमुख अधिमान’ भी कहा जाता है।

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