sthaniya swashasan gramin shahari
स्थानीय स्वशासन ग्रामीण और शहरी
विकास के नियोजन और उसकी क्रियाविधि में स्थानीय लोगों की भागीदारी आवश्यक है स्थानीय स्वशासन लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का प्रभावी उपाय है। स्थानीय स्तर पर वहां के लोगों की भागीदारी से योजना बनाकर क्रियान्वित करना स्थानीय स्वशासन है।
संविधान के 73वें संशोधन के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र के विकास के लिए पंचायती राज व्यवस्था तथा 74 वें संविधान संशोधन के अनुसार शहरी क्षेत्रों के लिए नगरीय स्वशासन को और अधिक सशक्त बनाया गया
पंचायतीराज व्यवस्था :ग्रामीण स्वशासन
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने त्रिस्तरीय पंचायतीराज व्यवस्था का प्रारंभ 2 अक्टूबर 1959 को नागौर राजस्थान में किया था।
ग्रामीण स्वशासन त्रिस्तरीय संरचना है इसमें सबसे पहले स्तर पर गांव की ग्राम पंचायत का दूसरे स्तर अर्थात विकास खंड पर पंचायत समिति तीसरे स्तर अर्थात जिले में जिला परिषद का गठन होता है।
वार्ड सभा ग्राम पंचायत की सबसे छोटी इकाई है एक ग्राम पंचायत में कितने वार्ड पंचों की संख्या निर्धारित होती है, उस ग्राम पंचायत क्षेत्र को उतने ही भागों में बांटा जाता है प्रत्येक भाग वार्ड कहा जाता है। एक प्रतिनिधि चुनते हैं जो उस वार्ड का वार्ड पंच कहलाता है। प्रत्येक वार्ड के मतदाताओं की सभा को वार्ड सभा कहते हैं। वार्ड सभा की अध्यक्षता वार्ड पंच द्वारा की जाती है।
किसी ग्राम पंचायत क्षेत्र की मतदाता सूची में दर्ज मतदाताओं की सभा को ग्राम सभा कहते हैं अर्थात गांव का कोई भी ऐसा स्त्री या पुरुष जिसकी उम्र 18 वर्ष से अधिक हो और जिसका नाम गांव की मतदाता सूची में दर्ज हो और जिसे मतदान करने का अधिकार प्राप्त हो गया ग्राम सभा का सदस्य होता है। ग्राम सभा की बैठक प्रत्येक तीन माह में एक बार अर्थात वर्ष में चार बार होती है।
ग्राम पंचायत का मुखिया सरपंच होता है तथा उस ग्राम पंचायत क्षेत्र में सभी वार्ड पंच ग्राम पंचायत के सदस्य होते हैं सभी वार्ड पंच अपने में से ही किसी एक वार्ड पंच को उपसरपंच चुन लेते हैं ग्राम पंचायत की बैठक में दो बार आयोजित की जाती है ग्राम पंचायत के कार्यों की क्रिया विधि के लिए ग्राम पंचायत में सरकारी कर्मचारी होते हैं जिनमें से एक ग्राम सेवक पदेन सचिव होता है।
ग्राम सचिवालय व्यवस्था के अंतर्गत प्रत्येक माह की 5,12 ,20 व 27 तारीख को ग्राम पंचायत स्तरीय कर्मचारी जैसे ग्राम, सेवक, पटवारी, ए. एन. एम., हेडपंप मिस्त्री आदि दिनभर ग्राम पंचायत मुख्यालय पर उपस्थित रहते हैं। प्रत्येक जिले को विकास खंडों में बांटा गया है। प्रत्येक विकास खंड स्तर पर पंचायत समिति का गठन करते हैं सभी ग्राम पंचायतों को मिलाकर पंचायत समिति का गठन होता है पंचायत समिति का मुखिया प्रधान कहलाता है प्रत्येक पंचायत समिति क्षेत्र को वार्ड में विभाजित किया गया है प्रत्येक वार्ड के मतदाता अपने एक प्रतिनिधि का निर्वाचन करते हैं जो पंचायत समिति का सदस्य होता है यह सदस्य अपने में से ही किसी एक सदस्य को प्रधान व एक सदस्य को उप प्रधान के रूप में निर्वाचित करते हैं पंचायत समिति के क्षेत्र के विधानसभा सदस्य क्षेत्र में स्थित सभी ग्राम पंचायतों के सरपंच भी पंचायत समिति के सदस्य होते हैं समय-समय पर इसकी बैठक की होती है जिनमें विकासखंड के सभी विभागों के खंड स्तरीय अधिकारी भी सम्मिलित होते हैं।
प्रत्येक जिले में जिला परिषद पंचायतीराज व्यवस्था की तीसरी और सर्वोच्च इकाई है सभी पंचायत समितियों को मिलाकर उस जिले की जिला परिषद का गठन होता है इसका कार्यालय जिला मुख्यालय पर होता है जिला परिषद के गठन के लिए पूरे जिले को वार्ड में विभाजित किया गया है जिला परिषद के प्रत्येक वार्ड के मतदाता अपने एक प्रतिनिधि का निर्वाचन करते हैं जो जिला परिषद का सदस्य होता है यह सदस्य अपने में से ही किसी एक सदस्य को जिला प्रमुख और एक सदस्य को उप जिला प्रमुख निर्वाचित करते हैं। जिले में निर्वाचित विधानसभा, लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य तथा जिले की समस्त पंचायत समितियों के प्रधान भी जिला परिषद के सदस्य जिला परिषद का मुख्य जिला प्रमुख होता है।
जिला परिषद ग्राम पंचायतों एवं राज्य सरकार के बीच कड़ी का कार्य करती है।
जो कार्य ग्रामीण क्षेत्र में ग्राम पंचायत द्वारा किया जाता है शहरों में इस प्रकार के कार्य नगर पालिका नगर परिषद नगर निगम करती है। 20,000 से अधिक एवं एक लाख से कम जनसंख्या वाले नगर में नगर पालिका एक लाख से अधिक किंतु 500000 से कम जनसंख्या वाले में नगर परिषद तथा 500000 से अधिक जनसंख्या वाले में नगर निगम होता है प्रत्येक वार्ड के मतदाता अपने एक प्रतिनिधि का निर्वाचन करते हैं जो कि पार्षद कहलाता है। निर्वाचित पार्षद अपने में से ही किसी एक पार्षद को अपना मुखिया और एक उप मुखिया चुनते हैं नगरपालिका का मुखिया नगर परिषद का मुख्य सभापति और नगर निगम का मुखिया मेयर या महापौर के नाम से जाना जाता है। इनका कार्यकाल 5 वर्ष तक होता है।
इन संस्थाओं को तीन स्त्रोतों से धन प्राप्त होता है।
पहला, इन्हें केंद्र या राज्य सरकारों से अनुदान और ऋण के रूप में धन मिलता है। दूसरा, इन्हें विभिन्न शुल्क और जुर्माने के द्वारा धन मिलता तीसरा, यह अपने शहर वासियों पर विभिन्न कर लगाकर उनसे धन प्राप्त करती है