बकस्य प्रतिकारः Class 6 Sanskrit Chapter 7

बकस्य प्रतिकारः Class 6 Sanskrit Chapter 7

बकस्य प्रतिकारः Class 6 Sanskrit Chapter 7

शब्द अर्थ
एकस्मिन् वने एक वन में
शृगालः गीदड़/ सियार
बकः च और बगुला
निवसतः स्म रहते थे
तयो: उन दोनों में
आसीत् था/थी
एकदा एक बार
अवदत् बोला
श्व: आने वाला कल
मया सह मेरे साथ
भोजनं कुरु भोजन करो
निमंत्रणेन निमंत्रण से
अभवत् हुआ
अग्रिम दिवसे अगले दिन
भोजनाय भोजन के लिए
निवासम् निवास स्थान को
अगच्छत् गया/गई
स्थाल्याम् थाली में
बकाय बगुले के लिए
क्षीरोदनम् खीर
अयच्छत् दिया
पात्रे बर्तन में
अधुना अब
सहैव (सह + एव) साथ ही
बकस्य चञ्चुः बगुले की चोंच
स्थालीतः थाली से
भोजनग्रहणे भोजन ग्रहण करने में
समर्था समर्थ
अतः इसलिए
केवलम् केवल/सिर्फ़
अपश्यत् देखा/देखी
अभक्षयत् खाया। खायी
शृगालेन सियार द्वारा
वञ्चितः ठगा गया
अचिंतयंत् सोचा
यथा जिस प्रकार
अनेन इसके द्वारा
व्यवहारः व्यवहार
कृतः किया गया
तथा उसी प्रकार
अपि भी
तेन सह उसके साथ
व्यवहरिष्यामि व्यवहार करूँगा
एवम् इस प्रकार
चिंतयित्वा सोच समझकर
करिष्यसि करोगे
यदा जब
तदा तब
सङ्कीर्णमुखे कलशे तंग मुख वाले कलश में
कुर्व: (हम दोनों) करते हैं
कलशात् कलश से
चञ्च्वा चोंच से
प्राविशत् प्रवेश किया
ईर्ष्णया ईर्ष्या से
अपश्यत् देखा
यादृशम् व्यवहारम् जैसा व्यवहार
तादृशम् वैसा
कृत्वा करके
प्रतीकारम् बदला
अकरोत् किया
आत्मदुर्वव्यवहारस्य अपने बुरे व्यवहार का
फलम् फल/परिणाम
दु:खद दुखद/दुख देने वाला
तस्मात् इसलिए
सद्व्यवहर्तव्यम् अच्छा व्यवहार करना चाहिए
मानवेन मनुष्य द्वारा
सुखैपिणा सुख चाहने वाले

 Class 6 संस्कृत Chapter 8 सूक्तिस्तबक:

Ram Shabd ke Shabd Rup

सौरमंडल और पृथ्वी

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