Hamare Ateet हमारा अतीत

Hamare Ateet हमारा अतीत

Hamare Ateet हमारा अतीत

पुरातात्विक स्रोत वे स्त्रोत होते हैं, जो पुराने हैं और पुरातत्ववेताओं द्वारा इकट्ठे किए गए हैं।
पत्थर पर जो लेख उत्पन्न किए जाते हैं उन्हें शिलालेख कहते हैं
साहित्यिक स्त्रोत वे हैं जो किसी भी भाषा में लिखित रूप में प्राप्त है।
जन्म से लेकर मृत्यु तक का संपूर्ण लेखा-जोखा वंशावली लेखोंको कि बहियों में लिखा जाता है।

 वंशावली लेखन का कार्य किया जाता है।

मनुष्य के जन्म से लेकर लिपी के विकास तक का काल प्रगैतिहासिक काल अथवा पूरा – ऐतिहासिक काल कहा जाता है।

पहले तांबा बाद में जस्ता फिर सीसा खोजा गया।
पत्थर के बाद मनुष्य ने धातुओं में सर्वप्रथम तांबे की खोज की।
सर्वप्रथम 1921 में पंजाब के हड़प्पा तत्पश्चात सिंधु के मोहनजोदड़ो नामक स्थानों पर खुदाई में इस नगर सभ्यता का पता चला।
मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कोटदीजी एवं चन्हूदरो वर्तमान में पाकिस्तान में है।
भारत में रोपड़, लोथल, धोलावीरा और कालीबंगा में सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष मिले हैं।
सिंधु सरस्वती सभ्यता को ईसा से 2500 वर्ष एवं वर्तमान से 4500 वर्ष पुरानी मानी जाती है।
सरस्वती नदी के तट पर वेदों की रचना होने का प्रमाणित विवरण प्राप्त होता है। वैदिक संस्कृति का जन्म इसी नदी के किनारे पर हुआ था सरस्वती नदी का उद्गम स्थल शिवालिक पहाड़ी से माना जाता है यह राजस्थान से होती हुई कच्छ की खाडी में गिरती थी। सरस्वती नदी को सिंधु नदी की मां कहा गया है।
सिंधु सभ्यता में सड़के एक दूसरे को समकोण पर काटती थी और नगर आयताकार खंडों में विभक्त हो जाता था। हड़प्पा के दुर्ग में सबसे अच्छी इमारतें धान्यगारो की थी। सिंधु सभ्यता में कुछ घरों में कुए भी प्राप्त हुए हैं। मकानों में स्नानागार भी मिले हैं। सिंधु सभ्यता में 3 सामाजिक वर्ग रहते होंगे, शासक वर्ग, व्यापारी वर्ग तथा मजदूर वर्ग।
ऐसा माना जाता है कि है संस्कृति लगभग 1000 वर्ष तक बनी रही होगी किंतु इसके कोई ठोस प्रमाण प्राप्त नहीं हुए हैं।
सिंधु की समकालीन विश्व की सभ्यताओं में मिश्र की नील नदी घाटी सभ्यता, मेसोपोटामिया की दजला फरात सभ्यता, चीन की ह्वाडहो नदी सभ्यता सम्मिलित है।
राजस्थान के प्रमुख पुरातात्विक स्थल:- कालीबंगा- राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में कालीबंगा नामक स्थान पर 1961 में 2 टीलो की खुदाई में पूरा ऐतिहासिक काल के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यह वर्तमान घग्गर नदी के किनारे पर है।
आहाड- उदयपुर की बैडच नदी के किनारे पर आहाड नामक बस्ती ताम्र नगरी के नाम से प्रसिद्ध थी।
गिलूण्ड- उदयपुर से 95 किलोमीटर उत्तर पूर्व में गिलूण्ड (राजसमंद) नामक स्थान पर एक टीले की खुदाई में आहाड के समान अवशेष प्राप्त हुए हैं।
बागौर- भीलवाड़ा जिले के बागौर नामक स्थान पर कोठारी नदी के किनारे पाषाण एवं ताम्रकालीन प्राप्त हुए हैं यह बनास संस्कृति के नाम से भी जाना जाता है।
बालाथल- उदयपुर के पूर्व में 42 किलोमीटर दूर वल्लभनगर के निकट बालाथल नामक गांव में एक टीले की खुदाई में ताम्र पाषाण कालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं।
नौह- पूर्वी राजस्थान के भरतपुर शहर से 5 किलोमीटर दूर नामक स्थान पर तांबे और हड्डियों के उपकरण, लोहे की कुल्हाड़ी इत्यादि प्राप्त हुए हैं।
चंद्रावती- (आबू सिरोही) माउंट आबू की तलहटी में आबूरोड के निकट चंद्रावती नामक स्थान पर ऐसे अवशेष प्राप्त हुए हैं। यहां चल रहे उत्खनन से किले के अवशेष और अनाज संग्रह के कोठार भी मिले हैं ऐसा प्रतीत होता है कि यहां एक विशाल दुर्ग था। चंद्रावती परमार वंश की राजधानी थी।
गणेश्वर- सीकर जिले में काॅतली नदी के तट पर इस सभ्यता स्थल से ताम्र पाषाणकाल की वस्तुएं भारी‌ मात्रा में प्राप्त हुई है।
बैराठ- जयपुर जिले में स्थित बैराठ विभिन्न युगो में विकसित सभ्यता स्थल रहा है। महाभारतकाल में यह मत्स्य जनपद की राजधानी था। यहां से सम्राट अशोक के शिलालेख भी प्राप्त हुए हैं।

error: Content is protected !!