Rajaram Mohan Rai Brahm Samaj
राजा राममोहन राय ( ब्रह्म समाज )
Rajaram Mohan Rai Brahm Samaj
राजा राममोहन राय भारतीय धर्म व समाज सुधार के अग्रणी पुरुष थे।
इन्हें भारतीय राष्ट्रवाद का अग्रदूत भी कहा जाता है।
इनका जन्म 22 मई 1772 बंगाल के राधानगर गांव में हुआ ।
इन्हें अरबी ,संस्कृत, फारसी, बंगला के अलावा लेटिन ,ग्रीक, हिब्रू ,भाषाओं का भी ज्ञान था।
इन पर पाश्चात्य विचारों का बहुत प्रभाव था।
इनका मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं था।
इन्होंने हिंदू समाज में प्रचलित अंधविश्वास एवं कुप्रथा को दूर करने का संदेश दिया था।
भारत में ईसाई धर्म के प्रभुत्व को रोकने तथा समाज को कुरीतियों से मुक्त करने के लिए उन्होंने 20 अगस्त 1828 को ‘ब्रह्म समाज’ की स्थापना की।
ब्रह्म समाज मूल रूप से वेद एवं उपनिषदों पर आधारित था।
ब्रह्म समाज के प्रमुख सिद्धांत:–
ब्रह्म समाज के प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैं-
- ब्रह्म समाज के अनुसार ईश्वर एक है, वह सृष्टि का निर्माता पालक और अनंत, अनादि, निराकार है।
- ईश्वर की उपासना हमें बिना किसी जाति संप्रदाय के आध्यात्मिक रीति रिवाज से करनी चाहिए।
- पाप कर्म के प्रायश्चित एवं बुरी प्रवृत्तियों के त्याग से ही मुक्ति संभव है।
- आत्मा अजर ,अमर है ।वह ईश्वर के प्रति उत्तरदाई है ।
- आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रार्थना आवश्यक है।
- ईश्वर के लिए सभी समान है और वह सभी की प्रार्थना समान रूप से स्वीकार करता है।
- ब्रह्म समाज कर्मफल के सिद्धांत में विश्वास करता है ।
- सत्य की अन्वेषण में विश्वास रखता है।
अतः ब्रह्म समाज सभी धर्मों के प्रति सहनशील था ।
Rajaram Mohan Rai Brahm Samaj
राजा राममोहन राय को अपनी भाभी के सती होते देखकर ‘सती प्रथा’ को रोकने की प्रेरणा मिली।
उन्होंने विलियम बेंटिक से 1829 में ‘सती प्रथा’ विरोधी कानून बनवाया तथा इस प्रथा को गैरकानूनी घोषित करवाया ।
इन्होंने बाल विवाह ,बहु विवाह, छुआछूत ,नशा आदि को प्रस्ताव का भी विरोध किया।
भारत के विकास व प्रगति के लिए राजा राममोहन राय पाश्चात्य ज्ञान व शिक्षा के अध्ययन को अति आवश्यक मानते थे ।
उन्होंने कोलकाता में ‘वेदांत कॉलेज’, ‘इंग्लिश स्कूल’ व ‘हिंदू कॉलेज’ की स्थापना की।
इन्होंने बंगला में ‘संवाद कौमुदी’, फारसी में ‘मिरातुल अखबार’ , और अंग्रेजी भाषा में ‘ब्रह्मनीकल पत्रिका’ प्रकाशित की ।
राजा राममोहन राय की मृत्यु 1833 में इंग्लैंड ‘ब्रिस्टल नगर’ में हुई ।
मृत्यु के बाद देवेंद्र नाथ टैगोर व केशव चंद्र सेन ने इस संस्था को आगे बढ़ाया।
बाद में ब्रह्म समाज दो भागों में बट गया था:-
- आदि ब्रह्म समाज और 2.भारतीय ब्रह्म समाज ।
ब्रह्म समाज के प्रभाव से ही 1867 में आत्माराम पांडुरंग ने ‘प्रार्थना प्रार्थना’ समाज की स्थापना की।
जिसे बाद में महादेव गोविंद रानाडे ने गति दी ।
राजा राममोहन राय को “नए युग का अग्रदूत” भी कहा जाता है।